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कोई झाँके / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
कोई झाँके हमारे मन में ज़रा
तो ख़ज़ाने मिलें ।
खिलखिलाती हँसी,
मीठे गाने मिलें ।
हम भी चाहें कोई हमसे बात करे
धूप घरमें हमारे कुलाँचें भरे
चलो ज़्यादा नहीं
थोड़ी देर को ही
हमें शैतानियों के बहाने मिलें ।
इन किताबों से भी
थोड़ी फुरसत मिले,
भूले-भटके कभी
प्यारा-सा ख़त मिले
जिसे पढ़कर नई आस
हममें जगे,
ज़िन्दगी को हमारी भी माने मिलें ।