कोई तो ज़िन्दा होगा / सुभाष राय
कोई बताएगा वो कहाँ है
जिसने बचाया था मासूम लड़की को
जिस्मफ़रोशों के चँगुल से
वो कहाँ है जिसने पड़ोसी के घर में घुसे
आतँकवादी की बन्दूक मरोड़ दी थी
और वो कहाँ है जो अपाहिज हो गया था
बदमाशों से जूझते हुए
जिसने बाइज़्ज़त बरी होते ही
बलात्कारी को कोर्ट के बाहर
ढेर कर दिया था
मुझे उन कायरों की दरकार नहीं है
जो सड़क पर लहूलुहान पड़े
बच्चे के पास से गुज़र जाते हैं चुपचाप
मुझे उन हतवीर्यों से क्या लेना
जो चाकू हाथ में लहराते मुट्ठी भर बदमाशों को
ट्रेन का पूरा डिब्बा लूटते देखते हैं
और इस झूठी आस में
कि शायद वे लुटने से बच जाएँ
अपनी बारी आने तक
जुबान और हाथ दोनों बन्द रखते हैं
देखो, पड़ताल करो
कोई तो ज़िन्दा बचा होगा
किसी की तो साँस चल रही होगी
कोई तो अपने लहूलुहान पाँवों पर
खड़ा होने की कोशिश कर रहा होगा
कोई तो डरे हुए बच्चे को बाँहों में सम्भाले
जूझा होगा अपहर्ताओ से, हमलावरों से
ढूँढ़ो शायद घायल पड़ा हो
कोई सत्येन्द्र, कोई मँजुनाथ