भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई दोस्त है न रक़ीब है / राना सहरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई दोस्त है न रक़ीब है
तेरा शहर कितना अजीब है

वो जो इश्क़ था वो जुनून था
ये जो हिज्र है ये नसीब है

यहाँ किस का चेहरा पढ़ा करूँ
यहाँ कौन इतना क़रीब है

मैं किसे कहूँ मेरे साथ चल
यहाँ सब के सर पे सलीब है