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कोई नग़्मा महब्बत का गाएँ चलो / रविकांत अनमोल

कोई नग़्मा महब्बत का गाएँ चलो
सारे शिकवे गिले भूल जाएँ चलो

एक मुद्दत हुई एक दूजे से हम
रूठे-रूठे से हैं मान जाएँ चलो

तन्हा-तन्हा चले देर तक, दूर तक
अब क़दम से क़दम फिर मिलाँ चलो

प्यार की रौशनी बाँटने के लिए
दीपकों की तरह जगमगाएँ चलो