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कोई नी मिल्यो म्हारा देश को / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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कोई नी मिल्यो म्हारा देश को,
आरे केक कहूँ म्हारा मन की
(१) देश पति चल देश को,
आरे उने धाम लखायाँ
चिन्ता डाँकन सर्पनी
काट हुंडी हो लाया...
कोई नी...
(२) मन को हो चहु दिश छोड़ दे,
आरे साहेब ढूँढी लावे
ढूँढे तो हरि ना मिले
आरे घट में लव हो लागे...
कोई नी...
(३) लाल कहू लाली नही,
आरे जरदा भी नाही
रुप रंग वाको कछु नही
आरे व्यापक घट माही...
कोई नी...
(४) पाणी पवन सा पातला,
आरे जैसे सुर्या को घाम
जैसे चंदा की हो चाँदणी
आरे साई हैं मेरो राम...
कोई नी...
(५) पाव धरन को ठोर नही,
आरे मानो मत मानो
मुक्ती सुधारो जीव की
आरे जीवन पयचाणो...
कोई नी...