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कोई न जान सका वो कहाँ से आया था / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
कोई न जान सका वो कहाँ से आया था
और उसने धूूप से बादल को क्यों मिलाया था
यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं
मकान छोटा था लेकिन बहुत सजाया था
वो अब वहाँ हैं जहाँ रास्ते नहीं जाते
मैं जिसके साथ यहाँ पिछले साल आया था
सुना है उस पे चहकने लगे परिंदे भी
वो एक पौधा जो हमने कभी लगाया था
चिराग़ डूब गए कपकपाये होंठों पर
किसी का हाथ हमारे लबों तक आया था
तमाम उम्र मेरा दम इसी धुएं में घुटा
वो एक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया था