कोई पेड़ आँगन में
होना ही चाहिये...
कि सींचने से लेकर
छांह में भीगने का सुख,
कोंपलों से लेकर
पतझर तक का सफ़र...
हर इक साल
बदलते कैलेण्डर के साथ
नये अनुभव तो
होने ही चाहिये.
कोई पेड़ तो आँगन में
होना ही चाहिये...
कि जब जिंदगी चुक कर
सूखे तने सी दिखने लगे,
पीले - भूरे, चकत्ते भरे पत्ते
स्मृतियों के, लहरा कर गिरने लगें...
किसी दिन उन्हें
बुहारने का सुख
मिलना ही चाहिये,
कोई पेड़ तो आँगन में
होना ही चाहिये.