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कोई पेड़ लगाता है / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
कोई पेड़ लगाता है फल दूजा कोई खाता है।
उसको है मालूम मगर वह पेड़ लगाये जाता है।
कितने पेड़ लगाये उसने
कितनों की तैयारी है।
सारे पेड़ों का विकास हो
उसकी ज़िम्मेदारी है।
वो अपनी ये ज़िम्मेदारी पूरी तरह निभाता है।
कोई पेड़ लगाता है फल दूजा कोई खाता है।
सर्दी-गर्मी या वर्षा हो
उसको चिंता किसकी है।
कैसे पेड़ फलें-फूलें बस
उसको चिंता इसकी है।
और इसी चिंता में डूबा वह दिन-रात बिताता है।
कोई पेड़ लगाता है फल दूजा कोई खाता है।
उसको मोह बहुत होता है
पेड़ों से, हर डाली से।
उसको कितना सुख मिलता है
बगिया कि रखवाली से।
कोई पेड़ कटे या सूखे वह कितना दुख पाता है।
कोई पेड़ लगाता है फल दूजा कोई खाता है।