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कोई प्रेम करके ही / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
कैसे इतना
उलट-पलट जाता है सब कुछ
प्रेम में
प्रेम करके जाना
कि प्रेम एक क्रांति है
एक आश्चर्य
विलीन हो जाता है अहंकार
एक पवित्र औदात्य में
शब्द अपने अर्थों का केंचुल उतार
धारण कर लेते हैं नए
अनछुए अर्थ
खुद हम हो उठते हैं इतने नए कि
मुश्किल हो जाये पहचान अपनी ही
कैसे तमाम बड़ी-बड़ी बातें भी
बेमानी लगने लगती हैं
रूमानी बातों के आगे
यह जान सकता है
कोई प्रेम करके ही।