कोई फ्लेमिंगो कभी नीला नहीं होता / निधि अग्रवाल
स्त्रियों का प्रेम जगत होता है,
नवजात फ्लेमिंगो जैसी
सफ़ेद प्रकृति लिए।
गुलाबी हो जाता है उनका संसार,
जब स्त्रियों को प्रेमी मिलते हैं
शैवालों से केरेटिनॉइड लिए।
गुलाबी सुखद अनुभूतियों की धीमी आँच पर सपनों के उफान का रंग है।
(तभी फूलों में बहुतायत से पाया जाता है एन्थॉकायनिन रंजक)
कुछ के प्रेमी सींचते हैं उन्हें
नीले अवसाद से,
स्याह पड़ती जाती है
उन स्त्रियों की आभ।
नीला
अतृप्त ख़्वाहिशों का रंग है।
(तभी तो धरा को दिखता है आकाश नीला
और आकाश से दिखती है धरा नीली)
गुलाबी स्त्रियाँ भी जल्द ही
नीली पड़ जाती हैं,
लेकिन कोई फ्लेमिंगो
कभी नीला नहीं होता।
फ्लेमिंगो जानता है
उपयुक्त पोषण चुन लेने की कला।
स्त्रियों को ही उचित बोध नहीं रंगों का
या नियति को ही कभी नहीं रुचा
प्रेम में स्त्रियों का...
फ्लेमिंगो-सा भाग्यवान होना!