कोई भी एक वादा तो वफ़ा करते
भरोसे का कभी तो हक़ अदा करते
महाजन कर रहे थे धर्म की बातें
अगर हँसते न हम तो और क्या करते
तुम्हें मालूम हो जाता कहाँ हो तुम
कहाँ हैं हम अगर तुम ये पता करते
तबीअत का पुरानापन भी ज़िद्दी है
ज़माना हो गया मेकप नया करते
कोई मक़सद तो होता ज़िंदगानी का
किसी से लौ लगाते कुछ नशा करते