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कोई भी जाल फैलाने न देना / सूरज राय 'सूरज'

कोई भी जाल फैलाने न देना।
किसी सैयाद को दाने न देना॥

बहुत समझा के रखना दिल को अपने
इसे दुनिया को समझाने न देना॥

मदद चाहे न कर पाओ किसी की
मगर हालात के ताने न देना॥

समझ का क़ायदा कहता यही है
किसी ग़लती को दोहराने न देना॥

बहुत बेबाक़ है दिल का कबीरा
हवेली में इसे गाने न देना॥

करे एहसां न रिश्तेदार कोई
नमक को ज़ख़्म सहलाने न देना॥

पशेमां हो न अपने घर का दीपक
उसे "सूरज" के घर जाने न देना॥