भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई भी हम-सफ़र नहीं होता / फ़रहत कानपुरी
Kavita Kosh से
कोई भी हम-सफ़र नहीं होता
दर्द क्यूँ रात भर नहीं होता
राह-ए-दिल ख़ुद-ब-ख़ुद है मिल जाती
कोई भर राहबर नहीं होता
आह का भी न ज़िक्र कर ऐ दिल
आह में भी असर नहीं होता
दिल को आसूदगी भी क्यूँकर हो
ग़म से शीर-ओ-शकर नहीं होता
आह ऐ बे-ख़बर ये बे-ख़बरी
दिल-ए-नादाँ ख़बर नहीं होता
दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता
अब तो महफ़िल से चल दिया ‘फ़रहत’
अब किसी का गुज़र नहीं होता