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कोई मरहम-पट्टी नहीं / संजय कुमार शांडिल्य

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कुछ बहुत अच्छी तलवारें बाज़ार में हैं
उन्हें इस दुश्मनों से भरे समय में
कोई ख़रीदता होगा
आवारा कुत्तों के लिए लाठियाँ
और विषधरों के लिए
साँप मारने की बर्छियाँ
हाथ जो हथियार चला सकते हैं
और वह साहस
कटे हुए सिर के बाल पकड़ कर
चौराहे पर नाचती है पाशविकता
इसे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी हासिल
करते हैं
यह किस बाज़ार में मिलता है?
मैं लाठियाँ, तलवारें और बर्छियों के बिना
भी जीवित रहूँगा
हज़ारों लोग जीवित रहते हैं
हज़ारों लोग मारे जाते हैं
अपनी ही लाठियों’, तलवारों’ और बर्छियों से
देह में लगे घाव के साथ
निकलता रहूँ बस
कोई मरहम-पट्टी नहीं।