कोई मासूम ख़्वाब है लड़की / प्रेमरंजन अनिमेष
कोई मासूम ख़्वाब है लड़की
ज़िल्द वाली क़िताब है लड़की
है करम आपका हमारा जो
हर जगह लाजवाब है लड़की
ख़ून जब रंग सूख कर होगा
सब कहेंगे गुलाब है लड़की
सारे रिश्ते गुनाह हैं उसके
सबके बदले हिजाब है लड़की
उसको उठने भी कोई दे कैसे
हर किसी का नक़ाब है लड़की
हर घड़ी कुछ न कुछ सजाती है
जैसे इक इज़्तिराब है लड़की
भर दिया दुख ने सर से पाँवों तक
इसलिए पुरशबाब है लड़की
वक़त मत पूछ एक लड़के से
वक़त बेहद ख़राब है लड़की
वो न जाने क्यूँ माँ ये कहती है
किस जनम का हिसाब है लड़की
है तो अपने लिए नहीं कुछ भी
और सबका रुआब है लड़की
बिन कमाई के सारे काम करे
किस क़दर कामयाब है लड़की
देख खो जाए ना कहीं इक दिन
तेरी आँखों का आब है लड़की
उसका अपना वजूद भी तो है
क्यों कहें माहताब है लड़की
तेरी ख़ातिर कोई ग़ज़ल 'अनिमेष'
ख़ुद की ख़ातिर अज़ाब है लड़की