कोई मिलता है उम्र भर के लिए थोड़े ही / प्रेमरंजन अनिमेष
कोई मिलता है उम्र भर के लिए थोड़े ही
प्यार होता गुज़र बसर के लिए थोड़े ही
ले के जाती हवा जो ख़ुशबू तेरी जाने दे
ले के जाएगी अपने घर के लिए थोड़े ही
इक नई सुबह भी बनानी हमें मिलकर दोस्त
साथ अपना है रात भर के लिए थोड़े ही
क्या करोगे सजा के पलकों पे मोती इतने
रह गए लोग इस हुनर के लिए थोड़े ही
अनसुनी ये दुआएँ चुन ले लबों से अपने
आह जो दिल में है असर के लिए थोड़े ही
चूमते भौंरे से कहे ये कली कानों में
ऐसे सपने हैं इस उमर के लिए थोड़े ही
मुझको पहुँचा के जाएगा वो कहाँ और कैसे
रास्ता कोई हमसफ़र के लिए थोड़े ही
मेरे दो आँसू कल मिलें जो किन्हीं आँखों से
है ये अख़बार की ख़बर के लिए थोड़े ही
सब हैं क़ानून की नज़र में बराबर लेकिन
है ये क़ानून हर बशर के लिए थोड़े ही
हो मुहब्बत या ज़िन्दगी या कोई भी रिश्ता
रखना सामान हर सफ़र के लिए थोड़े ही
अपना घर फूँकने का फ़न ये रहा सदियों से
शायरी लाल या गुहर के लिए थोड़े ही
अपने कान्धों पे हैं उठाए हुए फ़िक्रे जहां
कोई कान्धा है अपने सर के लिए थोड़े ही
आज जिस दौर से गुज़र रही दुनिया 'अनिमेष’
राग कोई है इस पहर के लिए थोड़े ही