भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई मुझ-सा मुस्तहक़े-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं / नज़र लखनवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई मुझ सा मुस्तहके़-रहमो-ग़मख़्वारी नहीं।
सौ मरज़ है और बज़ाहिर कोई बीमारी नहीं॥

इश्क़ की नाकामियों ने इस तरह खींचा है तूल।
मेरे ग़मख़्वारों को अब चाराये-ग़मख़्वारी नहीं॥