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कोई रह रह के मुस्कुराता है / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

कोई रह रह के मुस्कुराता है
क़ल्ब पर बिजलियाँ गिराता है

जब मुसीबत का वक़्त आता है
अपना साया भी रूठ जाता है

अब चले आइये ख़ुदा के लिए
अब ख़याल आप का सताता है

उस सितमगर पे जान देता हूँ
इश्क़ में जो लहू रुलाता है

रंज हैं जो जिगर को नोचते हैं
दर्द दिल को लहू रुलाता है

ज़ख़्म पुरसाने हाल हैं उसके
जो तेरे ग़म में डूब जाता है

अश्क़ आंखों के सूख जाते हैं
हां मगर दिल लहू रुलाता है

रास्ता मेरे दिल की दुनिया का
तेरे कूचे से होके जाता है।