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कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते / अब्दुल्लाह 'जावेद'
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कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
आप अपने नहीं आप अपने बहुत
राज़ रखते न हम इस तअल्लुक़ को गर
लोग रोते बहुत लोग हँसते बहुत
दिल की तन्हाइयों का मदावा नहीं
घूम कर हम ने देखे हैं मेले बहुत
इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत
जब थी मंज़िल नज़र में तो रस्ता था एक
गुम हुई है जो मंज़िल तो रस्ते बहुत
ख़्वाब ताबीर के मोड़ पर खो गए
यूँ के ताबीर-दाँ पड़ के सोए बहुत
पेड़ को काटने वाले देखें ज़रा
पेड़ पर हैं बने आशियाने बहुत
डूबने वाले शायद ये बतला सकें
डूबने को सहारे के तिनके बहुत