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कोई लगाव सब से फ़राग़त के बाद है / रवि सिन्हा

कोई लगाव सब से फ़राग़त के बाद है
हर फ़लसफ़े की ओट में कोई मुराद है

शाइस्तगी ने सत्ह को हमवार तो किया
गहराइयों में बूद के फिर भी तज़ाद है

ख़ल्वत को हाफ़िज़े में सुकूनत कहाँ नसीब
यादों के क़ाफ़िले से उठा गर्द-बाद है

अपनों से दुश्मनी की रिवायत जो छोड़ दी
तन्हाइयों के शह्र में ख़ुद से इनाद है

आहन से क़त्ल हो के भी आहन-गरी को आग
उस आख़िरी दरख़्त को जंगल की याद है

चुप्पी बड़ी अजीब है दानान-ए-हिन्द में
इस ख़ामुशी की जड़ में भी कोई फ़साद है

जिसमें नहीं है ज़िक्र मिरा एक भी जगह
उनकी वही किताब मिरी रूएदाद है


शब्दार्थ :
फ़राग़त – छुटकारा (respite)
मुराद – कामना (wish, desire)
शाइस्तगी – शराफ़त (civility)
हमवार – समतल (smooth)
बूद – अस्तित्व (existence)
तज़ाद – अन्तर्विरोध (contradiction)
ख़ल्वत – एकान्त (solitude)
हाफ़िज़ा – याददाश्त (capacity to remember)
सुकूनत – आश्रय (dwelling)
गर्द-बाद – धूल की आँधी (dust storm)
इनाद – शत्रुता (enmity)
आहन – लोहा (iron)
आहन-गरी – लोहार का काम (ironsmith’s work)
दरख़्त – पेड़ (tree)
दानान-ए-हिन्द – हिन्द के बुद्धिमान लोग (the wise men of India)
फ़साद – झगड़ा (quarrel)
रूएदाद – आपबीती, कथा (story, biography)