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कोई सपना नहीं / भूपिन्दर बराड़

तुम देर रात घर लौटते हो
शराब के नशे में धुत तुम्हारा हाथ
उसके पेट पर घूमता है बदहवास

फिर कोई सपना नहीं
खुली आँखों से वह
बंद करती है
हवा में फटकती खिड़की