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कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं / सलीम अहमद
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कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं
कि मौज मौज अंधेरों में डूबता था मैं
उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे
उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं
नए सितारे मिरी रौशनी में चलत थे
चराग़ था कि सर-ए-राह जल रहा था मैं
सफ़र में इश्क़ के इक ऐसा मरहला आया
वो ढूँढता था मुझे और खो गया था मैं