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कोई स्वप्न नहीं / पारुल पुखराज
Kavita Kosh से
कोई स्वप्न नहीं
नहीं
कोई एक भी
दाँव-सा
जिस पर खेलूँ
जीवन
चुभे
जो
बंजर नींद
को