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कोई हसरत तक नहीं / नादिया अंजुमन / राजेश चन्द्र
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कोई हसरत तक नहीं
मुँह खोलने की
फिर क्या गाना चाहिए मुझे...?
मैं, जिससे नफ़रत की
ज़िन्दगी ने
फ़र्क़ न रहा
जिसके गाने और न गाने में ।
क्यों करनी चाहिए बात मुझे
मिठास के बारे में,
जब अहसास होता है मुझे कड़वाहट का ?
आह,
आततायी की दावत ने
दस्तक दी मेरे मुँह को ।
सँगी कोई नहीं
ज़िन्दगी में मेरा
तो फिर किसके लिये
मीठी हो सकती हूँ मैं ?
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र