भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई हो बेवफ़ा देखा न जाये / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई हो बेवफ़ा देखा न जाये
किसी का रास्ता देखा न जाये

करे जो नफरतों की बात हरदम
कभी देता दुआ देखा न जाये

हमेशा हौसला खुद पे ही रखना
किसी का आसरा देखा न जाये

निगाहों में बसी सूरत है तेरी
कोई तेरे सिवा देखा न जाये

उड़ानें भर रहा जो आसमाँ में
परिन्दा भी गिरा देखा न जाये

लगे हैं गुफ़्तगू सब लोग करने
हुए हैं जो जुदा देखा न जाये

कभी किलकारियों से गूँजता था
ये सूना झोंपड़ा देखा न जाये