Last modified on 10 जुलाई 2010, at 12:31

कोऊ कलंकिनि भाखत है कहि / भारतेंदु हरिश्चंद्र

कोऊ कलंकिनि भाखत है कहि
कामिनिहू कोऊ नाम धरैगो ।
त्रासत हैं घर के सिगरे अब
बाहरीहू तो चवाव करैगो ।
दूतिन की इनकी उनकी
'हरिचंद' सबै सहते ही सरैगो ।
तेरेई हेत सुन्यो न कहा कहा
औरहु का सुनिबो न परैगो ।