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कोऊ नहीँ बरजै मतिराम रहौ तितही / मतिराम

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कोऊ नहीँ बरजै मतिराम रहौ तितही जितही मन भायो ।
काहे को सौँहैँ हजार करौ तुमतो कबहूँ अपराध न ठायो ।
सोवन दीजै न दीजै हमैँ दुख योँही कहा रसवाद बढ़ायो ।
मान रह्योई नहीँ मनमोहन मानिनी होय सो मानै मनायो ।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।