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कोकिल / महावीर प्रसाद द्विवेदी

कोकिल अति सुंदर चिड़िया है,
सच कहते हैं, अति बढ़िया है।
जिस रंगत के कुँवर कन्हाई,
उसने भी वह रंगत पाई।
बौरों की सुगंध की भाँती,
कुहू-कुहू यह सब दिन गाती।
मन प्रसन्न होता है सुनकर,
इसके मीठे बोल मनोहर।
मीठी तान कान में ऐसे,
आती है वंशी-धुनि जैसे।
सिर ऊँचा कर मुख खोलै है,
कैसी मृदु बानी बोलै है!
इसमें एक और गुण भाई,
जिससे यह सबके मन भाई।
यह खेतों के कीड़े सारे,
खा जाती है बिना बिचारे।

रचना वर्ष: सितंबर 1901 बाल विनोद, 1970, सम्पा. लल्लीप्रसाद पांडेय