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कोख से कंठ तक / अनीता सैनी

भ्रम के बादल
भाव रचते हैं।
आत्मा की गीली मिट्टी में —
प्रेम के अँखुए फूटते हैं।

तुमने देखा ही होगा —
मरुस्थल की कोख में
हिलोरे लेता समंदर,
मृगमरीचिका नहीं —
नागफनी को जन्म देता है।
और फिर,
उस नागफनी को
प्रेम में धीरे-धीरे
सूखते हुए भी,
तुमने देखा ही होगा?
और यदि
तुमने नहीं देखा —
तो बस इतना
कि कैसे
उसके लिखे एक-एक प्रेम-पत्र,
उसी की काया पर उग आए थे
काँटे बनकर।