भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोठी-बियाबानी / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निद्रालस भरा-भरा
बियाबान अब न रहा ।
रास्ता आम है अब
और काफ़ी मशगूल ।
डैनों के बल फाटक के खम्भों पर लटकीं
काई पुती सीमेंट की फ़रिश्तिनें
ताकती हैं ट्राफ़िक को ।
इतने जाते हैं, इतने आते
मगर कोई आता नहीं ।