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कोठी पीछे कुआँ / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
भाषण देकर भगीं मोटरें
घर लौटे कतवारो
पीठ फेर कर चूल्हे से
डेहरी पर बैठीं पारो।
खेतों में चूहों की माँदें
खोद रहे हैं बच्चे,
गहरे दबीं पकी बालें सब
निकलें डण्ठल कच्चे,
सिर पर मोटे तार झूलते
बिजली गई बोकारो।
भाषण पर बच्चे कुढ़ते
चूहों पर कुढ़ते बूढ़े,
हर खाली गगरी में
अम्मा खोयी थाली ढूँढ़े,
रोज मदरसे दुहराते हैं
कभी न हिम्मत हारो।
अपनी खपरैलों पर फैली
नीम, नीम पर कोठी,
कोठी पीछे कुआँ
हमारी डोर पड़ गई छोटी,
छत पर लेटी बिट्टो गाती-
‘मुझे फूल मत मारो’।