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कोदई जगोनी / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानार नानी, तरी नाना रे नान।
तरी नाना नानार नानी, तरी नाना रे नान।

का सबद सुनी दादी, तैय चली आय-2
आज नातिक उठे लागिन, लगिन देखन आएव।
का सबद सुनी दादी, तैय चली आय-2
आज नातिक होथे बिहाव, बिहाव देखन आएंव।
निवतो की निवतो दाई, सातो ही दोसी-2
का दई निवती दाई, सातों ही दोसी-2
कोठी माँ अन्न दाई, गाथे माँ दाम।
दामोनी दय के निवते सातों ही दोसी॥
निवतों की निवतों दाई, सातों ही टेढ़ा,
का दई निवती दाई,सातों ही टेढ़ा,
कोठी मा अन्न दाई,गाठे मा दाम।
दामोनी दय के निवती, सातों ही टेढ़ा॥
निवतों की निवतों दाई, सातों गीत कारिन,
कोठी मा अन्न दाई, गाठे मा दाम।

दामोनी दय के निवती,सातों गीत कारिन,
निवतों की निवतों दाई, सातों ही हंडेरिन,
का दई निवती दाई, सातों ही हंडेरिन,
कोठी मा अन्न दाई, गाठे मा दाम।
दामोनी दय के निवती, सातों हंडेरिन॥
सातो सुवासा, सातो सुवासिन,
 निवतों की निवतों दाई,सातो सुवासिन,
का दई निवती दाई, सातो सुवासिन,
कोठी मा अन्न दाई, गाठे मा दाम।
दामोनी दय के निवती, सातो सुवासिन॥
निवतों की निवतों दाई, सातों सुहासा,
का दई निवती दाई, साते सुवासा,
कोठी मा अन्न दाई, गाठे मा दाम।
दामोनी दय के निवती, सातो सुवासा ॥
बिहाव के नाने कोदय सुचेव, समधिन लय गय चोर।
मैं नयकों लय जौं समधिन, मूसा लय गय चोर॥
उंजूर मूसा, झुंझुर मूसा लय गय चोर।
धरो मूसा काटो मूडे कलसा बनाओ-2
बिहाव के नाने कोदय सुचेव, समधिन लय गय चोर।
मैं नयकों लय जौं समधिन, मूसा लय गय चोर॥
धरो मूसा काटो काने, दीवा बनाओ।
बिहाव के नाने हड़द सूचेंव, समधिन लय गय चोर।
मैं नयकों लय जौं समधिन, मूसा लय गय चोर॥
धरो मूसा काटो नड़ी , सेहनाय बनाओ।
बिहाव के नाने मिरिच सुचेव, समधिन लय गय चोर।
मैं नयकों लय जौं समधिन, मूसा लय गय चोर॥
धरो मूसा काटो पूछी, बाती बनाओ।
बिहाव के नाने पलड़ी सुचेव, समधिन लय गय चोर।
मैं नयकों लय जौं समधिन, मूसा लय गय चोर॥
धरो मूसा छालों खाले, नागारा बनाओ।
निवतों की निवतो दोसी, तरी नाना रे नान।
तरी नानी नानार, तरी नाना रे नान।
निवतों की निवतो दोसी, ठाकुर देवता।
निवतों की निवतो दोसी, खेरों महरानि।
तरी नानार नानीनानी, तरी नानारनानी।
तरी नानार नाना रे नान।
यासी वचन देवी, यसी वचन देबी,
दोसी जीवे लाखों वारिस।
नीको वचन देबी, नीको वचन देबी
जीवे लाखो बारिस।
हंसा जोड़ी, हंसा जोड़ी।
हंसा जोड़ी, हंसा जोड़ी।
दोसी परिवा जोड़ी।

शब्दार्थ –निवतों = आमंत्रण, दाई-माता, गीतकरिन- गीत गाने वाली महिलाएं, हंडेरिन =खाना बनाने वाली महिलाएं, बिहाब-विवाह,सूचेंव=बनाया, दाड़=दाल, मूसा=चूहा, दीवा=दीपक, मूड़ी=गला, मुंडी मिरिच=मिर्च, बात्ती=बत्ती, नागारा=नगाड़ा, परेवा=कबूतर, सुवासा=दूल्हा-दुल्हन के कार्य करने वाला पुरुष या दूल्हे का सहयोगी, सुहासिन=दूल्हा-दुल्हन के कार्य करने वाली सुहागिन स्त्री या दुल्हन की सहेली, टेढ़ा= विवाह के सारे कार्य करने वाला पुरुष। जिनकी संख्या सात होती है। दोसी= विवाह के मांगलिक कार्य करने वाले पुरुषजिनकी संख्या सात होती है। (कभी-कभी टेढ़ा और दोसी एक ही आदमी होता है) मोर-मेरा, बिराजय= आ गया-शोभा देता है, गली-खोर=आँगन-गली, छातिक भारे= छाती के बल से, सलगय=चलेगा, बैठकी=बैठना, सीखय=सीखेगा।

कोदई जगोनी बैगानी विवाह गीत है। यह आमंत्रण पाती गीत है,
जिसे हल्दी भिंगाते समय गाया जाता है। इसमें दोसी-टेढ़ा से लगाकर देवी-देवताओं तक विवाह में शामिल होने का निवता (आमंत्रण) दिया जाता है।

‘तरी नानी नानार नानी’ प्रारम्भिक लय है, जिस प्रकार सैला और रीना गीत में’तर नाना ना मोर नानार’प्रांभिक धुन या लय होती है। इसका कोई अर्थ नहीं होता है। पर इससे गीत का प्रारम्भ लय के साथ होता है। यह धुन या लय अत्यंत मधुर होती है।

दूल्हा कहता है- ओ आजा और आजी! तुम लोग यहाँ कैसे पहुँचे? किस लिये आए हो। आजा-आजी कहते हैं- आज हमारे नाती का विवाह शूरु होने वाला है। हमने सुना और उसके लगन देखने के लिए हम दौड़ पड़े। हम तो आ गए, लेकिन लगन लगाने वाले सातों दोसी और विवाह का सारा कार्य करने वाले सातों टेढ़ाओ को, जिनको पहले से ही नियुक्त किया है, उनको सबसे पहले आमंत्रण देकर विवाह घर लाओ। उनको पत्तल में दाल-चावल, रूपय आदि रखकर एक अद्धी दारू पिलाकर स्वागत करो।
(आदिवासी समाजों में महुवा की दारू उनके रीति-रिवाज और अनुष्ठानों निभाने का अनिवार्य अंगा है।)

विवाह हँसी-मज़ाक और खुशी मनाने का अवसर होता है। ऐसे में समधी-समधन तो सबसे पहले निशाने पर होते है, इसलिए गीत में कहा गया है की विवाह घर में बोरों में दाल-चावल भरा हुआ था। उसे मेरी समधिन चुरा के गई है। यह बात दूल्हे की दाई यानी माता कहती है। गीत में समधिन कहती है। इस बात का जवाब देती है। समधिन मैंने चोरी नहीं की है। यह काम तुम्हारे घर के चूहों ने किया है, वे बोरों के दाल-चावल चट कर गए हैं।
इस पर दूल्हे की माँ गुस्से होकर कहती है-घर के चूहों को पकड़ों और उनके सिर काटकर ‘कलश’ बनाओ।

कान काटकर ‘दीपक’ बनाओ।
पुंछ काटकर ‘बाती’ बनाओ।
गला काटकर ‘शहनाई’ बनाओ।
और चमड़ा उधेड़कर ‘नगाड़ा’ बनाओ।

फिर सभी दोसी (विवाह नियुक्त जातीय पुरोहित), माता महारानी, ठाकुरदेव, चाँद-सूरज और बैगाजाति के समस्त देवतागणों को बुलाओ। सारे देवियों को शीघ्र बुलाओ और उनसे कहो-वे दूल्हा-दूल्हन को आकार आशीर्वाद दें। ताकि ये जिन्दगी भर जीवनयापन करें सातों टेढ़ा विवाह में आमंत्रण दें। तुम चिंता मत करो। बोरी अन्न नहीं बचा तो कोठियों में खूब अनाजों भरा है, और गांठ में बहुत सा रूपया पैसा भी बंधा है। दोसी और टेढ़ाओ को पहले नगद नेग चुकाओ और सबसे पहले उनको बुलाओ, ताकि सुभ विवाह का कार्य प्रारम्भ हो।
सातों गीत गाने वाली ‘गीतकारीं’ को आमंत्रित करो।
सातों खाना बनाने वाली हंडेरिनों को आमंत्रित करो।
सातों सुवासा और सातों सुहासिनो को आमंत्रित करो।

विवाह के लिये कोदो बनाया, लेकिन समधिन चोरी करके ले गई। इस पर समधिन कहती है- मैं नहीं ले गई हूँ। कोदो तो उंजूर और झुंझूर नाम के चूहे खा गये। विवाह के लिये दाल बनायी। समधिन कहती है- मैं नहीं ले गई हूँ। दाल तो चूहे ले गये हैं। विवाह के लिये हल्दी पिसाई है। समधिन कहती हैं- मैं नहीं ले गई हूँ। दाल तुम्हारे घर के चूहे ले गये हैं।
विवाह के लिये ‘मिर्ची’ पिसाई है। समधिन कहती है- मैं नहीं ले गई हूँ।

मिर्च तो चूहे गये हैं, विवाह के लिये महलोंन के पत्तों से पत्तल बनवाई है। समधिन कहती है- मैं नहीं ले गई हूँ। पत्तल तुम्हारे घर के चूहे कुतर गये हैं।

दूल्हे की माता कहती है- दोसी! तुम धरती माता को आमंत्रण देना मत भूल जाना। ठाकुर देव को पहले आमंत्रित करना। खेर माई महारानी को आमंत्रित करना। सारे ग्राम देवताओं को आमंत्रित करना। कोई छूट न जाय। सारे मेहमान और देवी-देवताओं को आमंत्रित करना। कोई छूट न जाय। सारे मेहमान और देवी-देवता दूल्हा-दुल्हन को ऐसा आशीर्वाद दें कि वे लाखों वर्ष जीवित रहें। जैसे हंस-हंसनी की जोड़ी होती है। वैसे दूल्हा-दुल्हन की जोड़ी हमेशा बनी रहे। जैसे कबूतर की जोड़ी होती है। वैसे ही दूल्हा-दुल्हन की जोड़ी बनी रहे।