भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोना कहू चान अपमान लगैये / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
शरदक इजोरिया की गुमान करैये।
कोना कहू चान अपमान लगैये।
आसक आकाश मे ओहार किए टांगल
आंचरक कोर जेना पीयरे सँ रांगल
ताहि बीच कुहुकल परान लगैये।
कोना कहू चान अपमान लगैये।
कुसुमित साड़ी मे पेन किए साटल
विरहिणी वियोग भरि राति कोना काटल
जिनगी जरैत श्मशान लगैये।
कोना कहू चान अपमान लगैये।
बरसैत रौद मे बरसात लागय हमरा
मोन पड़ै की सब से हम कहबै ककरा
कनखी सँ कामदेव कमान कसैये।
कोना कहू चान अपमान लगैये।
अधरक बीच आव पियास जेना पड़िकल
रभसल मोन मे ज्वारि उधिआएल
बहसल वसन्त बेइमान लगैये।
कोना कहू चान अपमान लगैये।