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कोनीं लाधै बै दिन / हनुमान प्रसाद बिरकाळी
Kavita Kosh से
अब कोई सोधै
उण दिनां नै
जिका खुद
हाथां गमा दिया
जिण दिनां में होंवता
हेत अर प्रीत
नाच अर गीत
लीर-लीर कुड़ती में
धपटवों सुख
मा री गाळां
घी री नाळां
बाप री धोळ
ऐवड़ रा टोळ
कोनीं लाधै
अब मोकळो फिरोळ!