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कोनो जागल कोनो सूतल / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
कोनो जागल कोनो सूतल रहथ भोर में।
पराती गबइत उठलन कनिया भोर में॥
जूठा वरतन-वासन मलला के बाद।
चुल्हा-चउका लगबइत रहथ भोर में॥
तनिका देर क वाद घर में मुनियो उठल।
ओकरा दूध पिअबइत रहथ भोर में॥
घर में झारू-बहारू कएला के बाद।
कलऊ बनावेला बइठलन ऊ भोर में॥
जभे तनिको खिसकइत माथ के अचरा।
झट से ऊपर उठबईत रहथ भोर में॥
अइसन लागे कनिया लछमीनिया हतन।
घर के स्वर्ग बनबइत रहथ भोर में॥