कोनो विस्मृताक प्रति / राजकमल चौधरी
एहन शान्ति, एहन सान्त्वनाक हमरा अनुभव नहि छल
दुख छल जीवनमे आर कोनो किछ बैभव नहि छल
अहाँक आगमन भेल प्राण भेल उल्लासक मधुमय गान
रहलहुँ करैत स्नेहक गंगाजलमे कल्लोलित क्रीड़ा-स्नान
किन्तु देखिक’ अहाँक दृष्टि जेठक सूर्यक कटु उत्ताप
पड़ि गेल हमर जीवनमे दुर्दिनक विकटतम अभिशाप
वन-प्रान्तर सुगन्धिकेर समारोह छल से श्मशान बनि गेल
अमृतक पिंडमे के कहत कोना, अछि हालाहल सनि गेल
हिमशिखा बनल ज्वालामुख निर्झर बनि गेल अग्निधार
नन्दन-काननक पुष्प बनि गेल नरककेर सिंहद्वार
नहि बूझल छल प्रेमक आदि-अन्त थिक दूनू दुःख-ज्वाला
नहि बूझल छल दू टा प्रसून नहि बनि सकैत अछि माला
सौंसे उपवन भस्म भेल जरि गल सिङरारकेर गाछ
विश्वक मरुथलपर मूर्छित अछि चंचल आत्माक माछ
एहन शान्ति एहन सान्त्वनाक हमरा अनुभव नहि छल
अहाँ छलहुँ तँ हमरा की विश्वक सभ वैभव नहि छल?
(मिथिला मिहिर: 17.12.61)