भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोमलता / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
जिनका सिरहाना
ताउम्र
पत्थर रहा हो
उन्हें तकिए पर नींद
नहीं आती
पत्थर की कोमलता
हर कोई नहीं जानता