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कोमल जुबान जो थी वो सख़्ती पे आ गई / भावना

कोमल जुबान जो थी वो सख़्ती पे आ गई
जुल्मों-सितम की ऑच जो लड़की पे आ गई

कितना अजब कमाल है पुरखों की जीन का
नानी की शक्ल लेके मैं धरती पे आ गई

जादू ये कैसा हाय!इस बारिश ने कर दिया
बूंदों के साथ याद भी छतरी पे आ गई

सूरज ने हर-इक शै में ऐसे रंग भर दिये
पर्दा-नशीन ऑख भी खिड़की पे आ गई

झटका लगा है ऐसा कि पलभर में जिंदगी
जो लड़खड़ा रही थी वो पटरी पे आ गई

बच्चों को आते देखकर नटखट -सी गिलहरी
झट से उछल के पेड़ की टहनी पे आ गई