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कोमल भाषा भूषा वेश / सनेस / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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कोमल भाषा भूषा वेश
सभसँ सुन्दर मिथिला देश

भाषा - पूजा-पाठ संस्कृतक देल, हिन्दी काज चलाबक लेल
बङला उड़िया बुझि तँ जाइ, मन न भरय अङरेजी आइ
फर-फर मिथिला-भाषा बाजि, मनक भाव सभ लै छी साजि
बिनु सिखने शुद्धे परिभाषा, जय जय जय हे! मिथिला भाषा!!3॥
वेशभूषा - कुरता टोपी साफा वान्हि, अचकन-चपकन चादरि तानि
ई बहरैबा’ काल पोसाक, हमर अपन अछि वस्त्र फराक
खुटिआ मिजै माथा पाग, घरक अङरखा सुन्दर लाग
साँची धोती, दोपटा कान्ह, अपन वेश मे खर्च न आन
सभ सँ सुन्दर, सभसँ सस्त, भूषा देशी अपन प्रशस्त॥4॥
खैब-पीब-रोटी दालि सोहारी खाइ, कखनहुँ खोंटि मरिच-मरिचाइ
सभ सँ स्वदगर रुचिगर भात, आमिल मिलल दालि जँ पात
आलुक दम सँ चटगर झोर, हमर - दही, आनक अछि घोर
चूड़ा नवका सूगा रंग, छल्हिगर दही अपूर्वे संग
सरिसी सागक झँसिगर स्वाद, भोजन हमर सभक अपवाद॥5॥
खेत पथार-नहर काटि जे सीचल भूमि, रेल उपरसँ देखल घूमि
हमर बाघ अछि दोसरे रूप, ने पटबै ले’ नल आ कूप
गंडक कमला धारक कात, जतय पानि हो भरि बरिसात
ने अछि ऊसर ने अछि रेत, सभसँ ससिगर हमरहि खेत॥6॥
गाम-घर - घर-घर चर्खा टकुरी ताग, बाड़ी-बाड़ी पटुआ साग
चुभकै लेल चभच्चा पानि, लाबा लै अछि सजल मखान
लतरल बेढ़ भीड़ पर पान, मुहमे लाली, गरमे गान
सबतरि केरा आम लताम, सबसँ सुन्दर हमरे गाम॥7॥