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कोयला और आदमी / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
कोयला जैसा बाहर से
वैसा ही भीतर से है ।
फिर भी
दूसरों के लिए
जलता है ।
आदमी का आजकल
पता ही नहीं चलता है ।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा