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कोयलों की कूँ कहीं तो कांव का मौसम / आर्य हरीश कोशलपुरी

कोयलों की कूँ कहीं तो काँव का मौसम
हो चला है फिर गुलाबी गाँव का मौसम

बैठकर बातें चलो कर लें जवानी की
आम की अमराइयाँ हैं छाँव का मौसम

झूम कर गाले बजा लें ताल बासंती
है सुरों की रव ठुनकते पाँव का मौसम

उड़ चलें पछुवाँ पवन के संग अपने घर
शह्र में मिलता नही है गाँव का मौसम

सम्मिलन के पर्व पर दिल खोल कर मिल लें
चाहतें मन की बचा लें दाँव का मौसम

साधु को भी छूट मिलती है यहाँ कुछ दिन
ढूँढ ले तूँ भी ठिकाने ठाँव का मौसम