कोयल को प्राण बेचना / प्रसन्न कुमार मिश्र / दिनेश कुमार माली
रचनाकार: प्रसन्न कुमार मिश्र (1941)
जन्मस्थान: कटक
कविता संग्रह: रत्नद्वीप र माझी (1961), अदृश्य संगम (1976), सारा आकाश रे तार डाक (1979), बसंतर स्केच (1968),आ पक्षी फेरीआ (1983), ट्रक डाला रे सनातन (1991),चालिबार गीत (1992)
कनिका हो या बिनिका
सनातन जहां भी तुम जाओगे सनातन ही रहोगे
बरगद पर झूलोगे यादों में खोओगे
सुबह उठकर कोयल की आवाज कान लगाकर सुनोगे
कोई अगर संत सुने तो तुम्हे कोई आपत्ति ?
किसी अभक्त के अभियोग से
कब रूका है किसी कुल-देवता का रथ ?
जाओ... जाओ... अपने दुःख को
पल्लू में बांधकर ले जाओ अगर
कहीं कोयल से भेंट हो जाए
अपने दुःख को वहां उड़ेल देना
उसकी एक कूक से तुम्हारी
सारी अशांति दूर हो जाएगी
कुल-देवता का ठप्पा लगाकर
जिसको जो सहिंता लिखनी हैं,लिखने दो
मन या बेमन से
तुम्हारा क्या जाता है और
कोयल का क्या जाता है....
किसी आवेग में लकड़ियों का ढेर देखकर
तूँ क्यों आंसू बहाता ?
कोयल की एक कूक में
सारे आम के पेड़ रोमांचित हो उठते हैं !
कनिका हो या बिनिका
कोयल को प्राण बेचकर भी
तुम वहाँ अपनी सत्ता को भूल जाओगे
सनातन ! तुम कभी प्रतिशोध भी नहीं ले पाओगे
कभी भी नहीं ले पाओगे
तुम्हारी प्रतिहिंसा पसीना पोंछते ही चली जाती है
आम के मुलायम पत्तों को देखकर
तुम सारे दुष्ट आदमियों के चेहरे भूल जाओगे ।
समय मिलने पर संतों का स्मरण करना
तुम्हारा अभ्यास,
बस कहीं रूक जाने पर भिखारी को भीख देना ,
तुम्हारा स्वभाव,
रास्ते से कांटें हटा देना,
तुम्हारा स्वभाव
जहां भी जाओगे तुम सनातन रहोगे
बरगद पर झूलोगे यादों में खोओगे
कान लगाकर कोयल के स्वर को सुनोगे ।