भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोयल / फुलवारी / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कू कू करती कोयल काली।
फुदका करती डाली डाली॥
मीठे स्वर से हमें लुभाती।
प्यारे प्यारे गीत सुनाती॥
फूलों की ऋतु आती प्यारी।
हो जाती है यह मतवारी॥
इसकी कूक लुभाने वाली।
कू कू करती कोयल काली।