कोरामिन केर प्रयोजन / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
बरिसल गगनक आँखि अहर्निशि
तेँ धरती दहबोर छै,
हबोढकार गृहस्थ कनै अछि
नोर भरल दृगकोर छै।
रहि रहि गुम्हड़य मेघ
उताहुल भेल नदी अगराय तेँ,
खेत-खेतमे ठाढ़ जजातिक
प्राण सुखायल जाय तेँ।
एक गामकेर तोड़ि देलक
सम्बन्धे दोसर गामसँ,
पानि भेल छथि स्वयं हिमालय
निःसृत अपने घामसँ।
घर दुआरि भसिआयल अगणित
उमड़ल बाढ़िक वेग पर,
आशंकाकुल हृदय प्रकम्पित
भेल सभक प्रति डेग पर।
विज्ञानक बल लड़ओ प्रकृतिसँ
जिद्दी मनु-सन्तान ई,
तोड़ि सकत किन्नहु नहि प्रकृतिक
निर्मित सुदृढ़ विधान ई।
यदि नकारि अस्तित्व ईश्वरक
पड़त कठिन संग्राम मे,
मनुज समाज अपन करनीसँ
अपने फँसत कुठाममे।
सड़क कातमे भारत माता
आइ कनैत हकन्न छथि,
सुजलासँ सजला, सुफलासँ
विफला भलि विपन्न छथि।
संजय सुनबथि समाचार
नव दिल्ली केर धृतराष्ट्रकेँ
छैक कोरामिन केर प्रयोजन
भारत सन मृत राष्ट्रकेँ।