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कोरा कागज रख छोड़ा है / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
अभी अनकहा बहुत है बीच तुम्हारे मेरे
लिखे हुए शब्दों से ज्यादा
शब्द भरे हैं अंतराल में
सारा जीवन कोरा कागज रख छोड़ा है
कलम थमाकर तुमको
मैं अब मुक्त रहूँगी।
देखूँगी तुम किन शब्दों को
गढ़ पाते हो
देखूँगी तुम किन शब्दों को
पढ़ पाते हो।