सभी जगह पूँजीवाद के हाथी चल रहे हैं
सभी जगह सिर पर पगड़ी पहने बैठा हुआ है साम्राज्यवाद
और तुम मामूली-सी चींटी .... काटने पर किसी को पता भी नहीं चले
कुछ ख़ास कर नहीं पाती सिर्फ़ लालसा की जीभ देख पाती हो
दिन-दोपहर जीभ की सैकड़ों मरी मधुमक्खियाँ देख पाती हो
देख पाती हो तमाम चेहरों पर नक़ली हँसी
हँसी की ओर थोड़ी देर देखते रहने पर ही
साबुत कंकाल की खोपड़ी देख डर के मारे चीख़ सकती हो
तुम अब इन्सानों के शरीर नहीं देख पा रही हो
वे शरीर अब काग़ज़ में तब्दील हो गए हैं
वे अब डॉलर हैं, यूरो हैं, पॉण्ड स्टरलिंग हैं,
वे अब लिमोज़िन की सवारी कर रहे हैं, कॉन्कर्ड में उड़ रहे हैं
सजधज कर ब्रॉडवे म्यूज़िकल में जा रहे हैं
हर माह अरमानी ख़रीद रहे हैं
गर्मी में समुद्र की सैर निपटा रहे हैं,
इनके सीनों को खोल-खोलकर देख आई हो तुम .... इनके दिल नहीं हैं
सिर खोल कर देख आई हो .... इनके मस्तिष्क नहीं हैं
आँखें खोलकर देख है तुमने ... अन्धे हैं ये
हाथ रखते ही उसमें सड़ा माँस और मवाद उभर आता है
ये बहुत दिनों पहले मर चुके हैं
बहुत दिनों से ये लोग साँस नहीं लेते
तुम इन लोगों को छोड़कर जब उलटी दिशा में भाग रही थी
भीड़ देखो, देखो कई करोड़ ज़िन्दा लोग इनका अनुसरण कर रहे थे
भीड़ के लोग अपने पथरीले हाथों से तुम्हें भीड़ में खींचने की कोशिश कर रहे थे
और तुम अपने आप को पूरी ताक़त से छुड़ा रही थीं
पथरीली जीभें चक-चक आवाज़ कर रही हैं
पथरीली आँखों में करुणा है
और तुम भाग रही हो —
जी-जान से दौड़कर अब तुम शहर को छोड़ रही हो
तुम इन्सानों की तलाश कर रही हो
तुम व्याकुल होकर उस इन्सान को ढूँढ़ रही हो
जो गीत गाता है
जो इन्सान सपने देखता है, प्यार करता है
तुम पागलों की तरह इन्सानों की तलाश कर रही हो
तलाश कर रही हो
एक शहर ढूँढ़ रही हो मेरे लिए
जिस शहर के पास हृदय नाम का कुछ है
अब भी कुछ बचा रह गया है
भले बिल के बराबर हो, फिर भी है तो
तुम भाग रही हो
मानो सौ सालों से, शताब्दियों से भाग रही हो
साँस खींचकर भाग रही हो
तुम्हारे बाल लहरा रहे हैं,
बाल जटाओं में तब्दील हो रहे हैं, बाल पक रहे हैं
त्वचा पर लग रही है धूल, तहें बन रही हैं
कालिख़ जम रही है आँखों के नीचे
पैरों में जूते नहीं, कीचड़ सने हैं पैर, काँटे चुभे पैर हैं लहूलुहान
तुमने आख़िर ढूँढ़ ही लिया
हाँफते-हाँफते तुम रुकीं, तुमने साँस ली
लड़की, तुम कोलकाता में रुकी हो।
मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी