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कोवा काला-काला रे / श्रीप्रसाद

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कौवा काला-काला रे
इसे न मैंने पाला रे
रोज सबेरे बैठ मुँडेरे
करता है यह काँव
बोल-बोलकर जगा रहा है
जैसे सारा गाँव

यह है बड़ा निराला
कौवा काला-काला रे

दादी कहती है, यह कौवा
लाता है संदेश
पाहुन आएँगे या दादा
जो हैं गए विदेश

बनी गले में माला रे
कौवा काला-काला रे

ठीक समय पर यह आता है
जब होता है भोर
मैं मुन्नी के साथ जागता
सुनकर इसका शोर

काले पंखों वाला रे
कौवा काला-काला रे

उड़ जा कौवा, उड़ जा,
बोलीं दादी ऐसे बात
कोई आए तो मैं दूँगी
तुझे पेटभर भात

और दूध भर प्याला रे
कौवा काला-काला रे।