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कोशिशें / मानोशी

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कहते हैं कोशिशें कामयाब होती हैं

कितनी कोशिशें हमने भी कीं...
याद है वह हमारा छुपना चांद से,
अपने-अपने छतों पर?
उसे न देखने की कोशिश?
खिड़की भी तो बंद कर ली थी मैंने
कि वही चाँदनी तुम्हारी आँखों से छन कर
मुझ तक पहुँचती होगी।

और वो शाम?
जिस शाम हम मिले थे
आसमां का रंग और हमारे प्यालों की कॉफ़ी का
कत्थई रंग जो आँखों में समा गया था,
उसे मिटाने की कोशिश...
देखो! आज भी तो आ जाती है वह शाम ख्वाबों में
डूबते हुये सूरज का पता देने?

तुम्हें न हो याद
शायद पर मुझे है याद, वह आधी रात को उठ कर
सितारों के कारवां में एक सितारा बन
तुम्हारे साथ-साथ चलना मेरा,
तुम्हें अहसास नहीं मगर
मैं चलती थी तुम्हारे आंगन में,
देख आती थी तुम्हें सोते हुये
तुम्हारे ख्वाबों में,
उन सोने-चांदी के पेड़ पत्तों को छू आती थी,
उसे सिरहाने रख सोने की कोशिश की थी
नींद नहीं आई उस रात,
फिर किसी रात...

और सुनो! वो लाल फूल
जो दहकते हैं आज भी
तुमने जिन्हें सींचा था अपने प्यार से,
आज भी मेरे बगी़चे में महकते हैं,
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें... नाकाम कोशिशें!

कौन कहता है कोशिशें कामयाब होती हैं?