चेहरे     चेहरे     चेहरे 
चौतरफ़ा घेरते हुए
टूटे सपनों की किरचों से 
घायल चेहरा 
कूड़े की थैली पर घात लगाए 
भूखा चेहरा 
हर तरफ़ से हारकर 
भीख माँगने बैठी माँ का 
गंगाजली चेहरा 
ख़ून का पानी बनाने की
हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी 
रोटी को सोचता 
ओस से रात भर भीगता चेहरा 
कुछ चेहरे प्रश्नों से भरे 
लहूलुहान ,कँपकपाते, निचुड़ते, सूखते 
तमाम तार-बाड़ों के बाबजूद 
कभी कभार 
इन ऊबड़-खाबड़ चेहरों 
पीली आँखों पर हँसी 
बरसाती नदी-सी दूर तक सुनाई देती 
वहीं कुछ चेहरे कई परतें लिए 
मौक़ानुसार रूप धरते ,रंग बदलते 
ठहाके लगाते या मुस्कुराते आँखों-आँखों में 
ठहाके लगाते चेहरों के ठहाके 
दिन-ब-दिन कर रहे अतिक्रमण 
संवेदनाओं पर, भावनाओं पर  
पीली आँखों से झरती 
आत्मीय हँसी पर 
ऊबड़-खाबड़ चेहरों की रोटी-पानी, जंगल नदी 
गीतों-कहानियों ,आकाश और हवाओं पर 
ऊबड़-खाबड़ चेहरों, पीली आँखों की 
हँसी बनी रहे 
ऐसा कुछ करते रहना पड़ेगा ।