केकरा पुकारै छै
ऊ उदास बियाबान
कोशी के दूर-दूर चाँदी सें बनलोॅ बालू पर
नै ऐतै लैटी केॅ फेनू
बाबा विसूरौत
नै ऐतै हुनकोॅ है नब्बे लाख
कामधेनु गाय
कहाँ सें ऐतै
आबेॅ तेॅ चारा के अभाव में
हे कोशी माय
बेची आवै छै गाय
तोरे सन्तान
कसाय के हाथोॅ में
आकि पड़ोसी देशोॅ में
आदमी के अँतड़ी में पचै लेॅ।
कत्ते बदली गेलै
हे कोशी माय
तोरोॅ ई आँचल
जे कभियो स्वगोॅ सें बढ़ी केॅ
पवित्तर रहै
महर्षि शमीक के
गूंजै रहै जहाँ मंत्र
आरो गूंजै जहाँ
महर्षि शमीक-पुत्र
ऋषि शंृग के वेद-मंत्र
पावी जिनकोॅ आशीष
अवध तक निहाल होलै
राजा दशरथ के
सूनोॅ-सूनोॅ ऐंगन में
गूंजलै किलकारी
पर आय
नै ऊ महर्षि शमीक छै
नै तेॅ ऊ ऋषि शृंग ही
बस आखेट करै छै
आखेटक परीक्षित
जे मोॅन होय छै
करै छै-बेमत्त होय
डाली दै छै जित्तोॅ साँप
जेकरोॅ गल्ला में चाहै छै
ओकर्है
के विरोध करेॅ
के शाप देतै
नै आबेॅ साधक शमीक छै
नै होनोॅ तेजस्वी ऋषि शृंगी।
हे कोशी माय
तबेॅ तेॅ तोहें
आरो उन्मादनी रहौ
सृष्टि केॅ क्षण्है में
निगली जायवाली
मतरकि
सृष्टि के रक्षिको
तोंही छेल्हौ
तोरोॅ हृदय के ममता के
कोय पार नै-हे माता
ऊ केन्होॅ कठिन समय रहै
जबेॅ शून्य नें
हवा आरो रौशनी
सब निगली लेलेॅ छेलै
खाली अंधकार नाँचै छेलै
आरो अंधकारे पेटोॅ सें सटलोॅ
तोरोॅ खलखल करतें पानी
कोय नै
काही बचलोॅ छेलै
बचेॅ पारलोॅ छेलै
तखनी
हे कोशी माय
तोरोॅ मोॅन करुणा सें भींगी गेलोॅ रहौं
आरो तोरोॅ वहेॅ छलछलैलोॅ मोॅन
एक मछली बनी केॅ
बचाय लेलेॅ रहै
वैवस्वत मनु केॅ
हौ उफनैलोॅ महाप्रलय के बीच
बची गेलोॅ छेलै वैवस्वत मनु
पहुँची गेलोॅ रहै
हिमालय के गोदी में।
हे कोशी माय
आय तेॅ तोरोॅ ऊ रूपो नै
नै तेॅ तोरोॅ ऊ विस्तार
बस छाड़न ही छाड़न
दूर तांय पसरलोॅ अनन्त
तभियो तोरोॅ मनुपुत्र-उदास
भयभीत
आँखी में नाँचै छै
एक भयानक स्वप्न
महामृत्यु के
हृदय में नै कोय विश्वास
की ऐतै कोय मीन
ओकरोॅ प्राण-रक्षा लेली
हहरै छै
वैवस्वत मनु के पुत्र सिनी।
जीवन के दूर तक
कहुँ कोय सुख के दरेश नै
रात-दिन
दिन-रात
कोय चिड़िया
टेरै छै-अपशगुन
जानेॅ की होतै
दहलै छै बालू के मोॅन
हहरावै छै खोॅर र-पतार
कि कहीं फेनू तेॅ
नै घुसी ऐलोॅ छै
वहेॅ बाघिनियाँ
कहीं कोय नया विसू के
जन्म पर
मतरकि तबेॅ की होतै
कान्हौवाला तेॅ कोय नै होतै
नै डकरतै गाय
गाय के गाय
नब्बे लाख गाय
जेकरे कारण हे कोशी माय
तोरोॅ ई आँचल
कभियो कहावै रहौं
गौ के गृह-गोगरी
राजा विरट के राज
कोशी के तीरेॅ-तीरेॅ
वहाँ सें लै केॅ वहाँ तक
मोरंग सें मालदा तक
अंग महाजनपद के एक छोर
जहाँ कभियो
शरण लेलेॅ छेलै
पाण्डु के पुत्र-पाण्डव नें